मानो या ना मानो "फ़र्क परता हैं"
मैं आज उनलोगो के लिए लिखना चाहती हूँ जो अक्सर ये कहते है-तूम दूसरों के बारे में क्यों इतना सोचती हो, दूसरों से क्या फर्क पड़ता है। ऐसे लोगो की संख्या कम नहीं हैं जो ऐसा सोच रखते हैं। उनका मानना है कि खुद में मस्त रहो, दूसरे क्या करते है उनसे क्या लेना है। घूमना, पार्टी करना और दूसरों पे कमेंट करने वाले ये लोग शायद अपने दिमाग पे जोर देना नहीं चाहते नहीं तो ये जग जाहिर है कि हमारा समाज तथा वातावरण हरेक व्यकि से बना हैं। इस तरह इंसानो की अच्छाई और बुराई एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। आप बहुत अच्छे ड्राइवर हैं फिर भी दुर्घटना होना संभव है क्योंकि सामने वाला भी अच्छा ड्राइवर हो ये जरुरी तो नहीं। किसी व्यक्ति ने कार खरीद ली, उसने तो अपना भला किया अपनी सुविधा बढ़ा लिया, पर उसने जाने अनजाने वातावरण में दूषित हवा फैला दिया। छोटे छोटे नवजात बच्चे आजकल हॉस्पिटल में साँस की बीमारी से झूझते नजर आते है, उन मासूम बच्चों को हॉस्पिटल में देख कलेजा मुंह को आ जाता है। इंडस्ट्री के उन महान पूंजीपतियों को-जो बड़ी आसानी से खुली हवा में दूषित ज़हर घोल रहे है-कुछ नहीं बोल सकते। पर उनके कारनामो से सबको फर्क परता हैं। हॉस्पिटल में साँस की बीमारी से लड़ते लोगो की लाइन, महंगे महंगे दवाइया इस बात का प्रमाण है की उन्हें खुली हवा में साँस लेने से कितना फर्क पड़ा है। बात इतनी सी नहीं है, जब ये लोग अपने हैसियत का धौंस सरेआम गरीबो पे दिखाते हैं तो उनके मासूम भावनाओ पे भी फर्क परता है।
इस तरह से हम सब इंसान चाहे अनचाहे आपस में जुड़े हुए है। एक का साँस लेना और दूसरे का बंद हो जाने से भी फर्क परता है। भले ही हम ध्यान नहीं दें या नजरअंदाज कर दें पर हमारा हंसना-रोना दूसरे को प्रभावित करता हैं। फर्क परने से मेरा तात्पर्य ये है कि हम अच्छा करेंगे तो अच्छा और बुरा करेंगे तो बुरा प्रभाव पड़ता हैं। हरेक एक-दूसरे के हाव-भाव, चाल-चलन से प्रभावित होते है। किसी के पास अधिक धन है उसने दूसरे जरुरत मंद की मदद कर दी उसके जीवन पे कितना बड़ा फर्क पड़ा। इसी तरह किसी बेरहम ने किसी को लूट लिया उस बेचारे का तो बड़ा नुकसान हो गया।
हमारे बिच दो तरह के अच्छे लोग है एक वो जो अच्छे है पर खुद से मतलब रखते है, दूसरा वो जो अच्छे है और वो चाहते है की दूसरे भी अच्छे बने। आजकल लोग खुद अच्छे होने पे ज्यादा जोड़ देते है। बहुत अच्छी बात है। पर क्या इतना काफ़ी है? हमने तो कूड़ा नहीं फैलाया सामने वाला चाहे पूरा मोहल्ला गन्दा करदे, अपना क्या! हम तो भले है सामने वाला सरेआम गुंडागर्दी करे अपना क्या! अक्सर ऐसा देखा और सुना जा रहा है की सामने किसी ने किसी को कुचल दिया पर दूसरे उस बेहाल इंसान की मदद के वजाय कुछ लोग उसका विडियो बनाने में लगे रहते है। हाल ही के बेहद शर्मनाक घटना 'सिद्धार्त शर्मा रोड एकसीडेंट' को देखे (जारी विडियो के अनुसार) तो आपको अंदाज़ा होगा की जहां एक दरिंदे ने सरेआम उसे रौंद दिया उस हालत में भी एक लालची उसका बैग उठा कर चुपचाप निकल लिया। उसे उस दुर्घटना से महज़ इतना फ़र्क पड़ा की एक बैग हासिल कर लिया। कितनी शर्म की बात हैं।
हमारी अच्छाई किसी के अच्छे के लिए न हो तो ऐसी अच्छाई, ऐसी नेकदिली का आचार तो नहीं बनाया जायेगा! अगर आप को लगता है की आप भले इंसान है तो आपको बेसक दिखा देना चाहिए की "भाई जो तुम कर रहे हो उससे हमे फर्क पड़ता हैं और अब हम जो करेंगे उससे तुम्हे भी फर्क पड़ेगा"! जरुरी नहीं की आप बॉलीवुड स्टाइल में दो-दो हाथ पे उतर जाये पर हाँ अपने क्षमता के हिसाब से बहुत कुछ कर सकते है। पोलिश को कॉल कर सकते है, लोगो को आवाज दे सकते है, अगर सामने वाले से तन्दुरुस्त है तो दो-दो हाथ में ही कोई नुकसान नहीं। आपके मदद से सायद किसी की जान, कीसी का धन, या किसी की इज्जत बच जाये। हा सायद आपको कोई मैडल न कि मिले, लोगो की सराहना ही मिल जाये परन्तु सबसे बड़ी बात "आपकी अंतरात्मा आपको जो हौसला, आत्मशक्ति प्रदान करेगी उसके सामने दुनिया का मेडल तो किसी काम का नहीं"!
हम सब एक आम इंसान है, हमारी छोटी-बड़ी जरूरतें तथा आशाएं हैं। इन्हे पूरा करते-करते हम पूरी जिंदगी निकाल देते है। इस बिच अगर हम कुछ अच्छा कर जाये तो इससे बेहतर क्या होगा! ऐसे अनेको लोग है हमारे बिच जो बहुत कुछ कर रहे है-हमारे समाज, वातावरण और हमारे जिव जन्तुओ के लिए पर ऐसे लोग भी है जिन्हे वाकई किसी से कोई मतलब नहीं। जो खुलकर कहते है की हाँ मैं बुरा हूँ और मुझे किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता है। ये भी अच्छी बात है, जब दिन-रात, धुप-छाँव साथ चल सकता है तो अच्छे-बुरे भी सही। ऐसे लोगो को सिर्फ एक बात कहना चाहूंगी की "भाई अच्छी बात है आप को दूसरे से कोई फ़र्क नहीं पड़ता पर आप भी ऐसा कुछ मत करो की दूसरे को फर्क पड़े"! जैसे पडोसी सो रहे हो और आप ने वॉल्यूम बढ़ा दिया-पार्टी यूँ ही चलेगी! :)
-चंचल साक्षी
09-04-2016
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