इंसान मुझे पंछी के नाम से जानते हैं। लोग अपनी सहूलियत से हमारे बारें में अनेक कल्पना करते हैं। आज मैंने सोचा क्यों न अपनी कहानी मैं ख़ुद ही आपको बताऊ। तो सुनिये। मैं दूर देश का परिंदा हूँ। वो दूर देश जंहा इंसान पहुँचने के लिए अनेक जद्दो ज़हद करते हैं। कोई नौकरी की तलाश में कोई अपनी तालीम के लिए पहुँचते हैं। उन्हें काफ़ी मुशक्कत करनी पड़ती हैं। पासपोर्ट, बीज़ा और जाने क्या क्या। पर हम परिंदो की कोई सिमा रेखा नहीं, कोई शरहद नहीं होती। हम सही मायने में आज़ाद हैं। पुरे विश्व में जंहा उपयुक्त वायु एवं भोजन की संभावना होती है हम चले आते हैं। हम परिंदे एक दूसरे से भेद भाव नहीं करते। हम रंग रूप देखकर अपने मित्र नहीं बनाते। हाँ लेकिन हमारे पास इंसानो की तरह अपार साधन नहीं हैं की प्लेन में बैठे और दुनियाँ के किसी कोने में पहुँच गये। हम इन नन्हे परो के सहारे सैकड़ो मिल की दूरी तय करते है। हमलोग जरुरत जितनी दाना चुगते हैं, जरुरत के हिसाब से ही साधन एकत्र करते हैं। हम पंछी है फ़िर भी इंसानो की तरह गंदगी नहीं फ़ैलाते। हिंदुस्तान की सरजमीं पे मैंने कई बार यात्रा की हैं। आवास एवं भोजन की तलाश में हर साल यहां आते रहे हैं पर साल दर साल हमारे लिए उपलब्ध संसाधन लुप्त होता दिख रहा हैं। एक भरा पूरा परिवार है मेरा, जानने वाले अनेक हैं दुनियां के दूसरे कोने में पर भोजन की ख़ोज में हम यहां आते हैं। इस बार भी मैं अपने परिवार को लेकर यहां आया हूँ। पर मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। मेरे पांच बच्चे हैं। सबसे छोटे का नाम नन्हे हैं। हम पूरा परिवार एक पेड़ पर बसेरा कर रहे थे। अचानक किसी इंसान ने वो पेड़ काटकर ट्रक पे ऱखकर जाने कहा ले गया। हम बाल बाल बचे। बमुश्किल २ दिन की लगातार ख़ोज में हमें दूसरा ठिकाना मिल गया। हमारे घोंसले के थोड़ी दूरी पर ही एक नदी हैं। हम बहुत ख़ुश थे की पानी की तलाश में कही और नहीं जाना पड़ेगा। मेरे नन्हे को आज बड़ी जोड़ की प्यास लगी थी। वो फड़फड़ाता हुआ नदी की तरफ़ दौरा। हमलोग उसका इंतज़ार करते रहे पर वो बहुत देर तक नहीं लौटा। पहले तो हमें लगा की वो भोजन की खोज़ में या मस्ती में कही चला गया हैं पर मैंने उसको दूर जाने की सलाह नहीं दी कभी तो मुझे चिंता हुई। मैंने बड़े से कहा जाओ ज़रा अपने भाई को बुला लाओ नदी किनारे पे चहक रहा होगा। वो गया पर खाली हाथ लौटा। मैंने उत्सुकता से बड़े से पुछा की नन्हे को कहा छोड़ आये। बड़े के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थी,पंख झटकता हुआ बोला माँ वो नदी किनारे नहीं हैं। और मैंने उसे दूर दूर तक देखा वो कहीं नहीं मिला। मैंने सोना को कहा बेटी तू उसके दोस्तों से पूछ कहीं वो बग़ल के जंगल तो नहीं चला गया। मैं और तेरे भाई नदी के पास जा रहे हैं, कुछ ख़बर मिलते ही तुम भी नदी के किनारे आ जाना। सोना ने अपने साथ नन्ही को भी ले लिया ताकी ज़्यादा से ज़्यादा परिंदो से बात कर सके। नदी किनारे पहुँचते ही मैंने कौआ दादा से पुछा, "दादा क्या आपने मेरे नन्हे को देखा है"? कौआ ने कहा, "नहीं मैंने तो नहीं देखा, मेरे से पहले यहां एक बगुला बैठा था उसे ख़बर हो कुछ"। अब मैं बगुला को कहा ढुँढू? ऐसा कहते हुए मैं आगे बढ़ गयी। मेरे मन में जो बेचैनी थी वो और बढ़ती जा रही थी। मैं उड़ती किसी पेड़ पे बैठकर अंदाज़ा लगाती की नन्हे कहा होगा और आगे बढ़ती। कई बार मैं पेड़ की टहनी से टकराई, कई बार मैं ज़मीन पे गिरी ध्यान नहीं। बस मैं अपने बच्चे को देखना चाहती थी सही सलामत। मेरे साथ बड़े भी पूरी कोसिस कर रहा था की कुछ अच्छी ख़बर हाथ लगे। शाम की थोड़ी बहुत धुप भी अँधेरे में तब्दील हो रही थी। अँधेरे ने मेरी चिंता में कई गुणा बढ़ोतरी कर दिया था। उधर सोना भी नन्हे के के मित्रो एवं माता पिता से उसकी ख़ोज ख़बर ले रही थी। उसे भी कोई सफ़लता नहीं मिली थी। थोड़ी बहुत रौशनी में अगर हम नन्हे को नहीं ढूंढ सके तो उसका मिल पाना नामुमकिन होता। मैंने अपनी कोशिस तेज़ करदी। मैंने सोचा अगर उसे किसी जानबर ने खा लिया होगा तब तो उसका नमो निशान नहीं मिलेगा पर अगर वो किसी कारन से पानी में बह गया होगा तो मुझे तेज़ी से आगे बढ़ना और किनारे पे तलाशना होगा। साथ ही मैं ज़्यादा से ज़्यादा लोगो से पूछ रही थी। इस तरह हम आगे बढ़ रहे थे। मन ही मन अपने ईश्वर से नन्हे के सलामती की प्रार्थना कर रही थी। अचानक मुझे दूर झाड़ियों में कुछ फँसा हुआ दिखा। जितनी तेज़ी से मैं उस झाड़ी के पास पहुँच रही थी उससे ज्यादा तेज़ मेरी धड़कने हो रही थी। झाड़ी के पास पहुंचकर मेरी आस और तलाश दोनों ख़तम हो गया। झाड़ी में बहुत ही बुरी तरह से फंसा हुआ पंछी मेरा नन्हे ही था। हाय ईश्वर मुझे ये दिन क्यों दिखाया? मैंने तो अपने बच्चो को पालने एवं परिवार को सँभालने के सिवा किसी के बारे में सोचा तक नहीं बुरा करना तो दूर की बात हैं। सच ही कहा है किसी ज्ञानी ने इस युग में अच्छे के साथ ही बुरा होता हैं। मेरा रोना बिलखना तो कम नहीं हुआ हाँ नन्हे को अपने इन्ही चोंच में उठाये, जिनसे उसे मैं दाना चुगने को देती थी, अपने घोंसले में आ गयी। साथ में रोता हुआ बड़े था जो अपनी बहनो को बुला लाया। हम सबका रोना सुनकर सारे पंछी परिंदे पहुँच गए। एक अनुभवी परिंदा ने कहा की एक जानकार तोता है वो इसे जांचकर कुछ कारण बता सकता हैं। बड़े दौड़कर उसके साथ तोता को बुलाने गया। चटपट में तोता आ गया। तोते ने नन्हे को ख़ूब अच्छी तरह परख़ने के बाद गंभीर होते हुए एक बात कही, "इंसानो ने आपके नन्हे की जान ले ली " । सबलोग हैरानी से तोता की ओर देखने लगे। सबसे ज्यादा हैरान मैं थी क्योंकि इंसान अगर किसी पंछी का शिकार करते हैं तो उसे आहार बनाकर खा जाते हैं पर नन्हे तो पानी में बहकर झाड़ी में फंसा हुआ था। तोते ने बात को साफ़ करते हुए कहा की, "इंसानो द्वारा नंदी में बहाया हुआ विष जो की नदी के बून्द बून्द में मिश्रित है ने नन्हे की जान ले ली। ये नदी पुरे शहर की गन्दगी अपने अंदर समेटे हुआ है, बड़ी बड़ी इंडस्ट्री की जहरीले गन्दगी को नदी में बहा दिया जाता हैं। इंसानो की मल मूत्र से लेकर उनके द्वारा छोड़े गए हर गन्दगी जो किसी भी साफ़ स्वच्छ पानी को एक पल में जहरीला कर देता है इसी नदी में बहता हैं। हम पंछी अगर बहुत प्यासे होते है तो भी दूर की एक तालाब में पानी पिने के लिए जाते हैं। मैंने अपने आँशु पोंछते हुए कहा की हम कल रात ही यहां घोंसला बना कर रहने आये थे। हमें इस बात की तनिक भनक नहीं थी। मेरे दूसरे बच्चे समझदार हैं वो सही गलत समझ सकते हैं पर नन्हे अभी छोटा था। उसे इस बात की बिलकुल समझ नहीं होगी तभी वो अपना जान गवां बैठा। सभी परिंदे ने खूब सहानुभूति देते हुये अपने घर चले गये। नन्हे को अभी भी मैंने अपने पंख से चिपका रखा था। मेरे मन में एक ही सवाल था "आख़िर इंसान को चाहिए क्या"? वो ख़ुद को जीवो में सर्वश्रेष्ठ कहते है, क्या वाक़ई? सर्वश्रेष्ठ का तात्पर्य क्या हत्यारा होता है ?आज मेरे नन्हे की जान गयी कल किसी और का कलेजे का टुकड़ा होगा। कल किसी और का। दुनियाँ में पेड़ पौधे ,नदी तालाब सबके लिए है पर इंसानो ने न तो नदी तालाब इस्तेमाल के काबिल छोड़ा बल्कि प्रकृति द्वारा दिए हर उपहार को नाश कर दिया। यूँ ही चलता रहा तो इंसान अपने विनाश के करीब स्वं पहुँच जायेगा। हाँ अपने और बच्चो के ख़ातिर इस सरजमीं पे कभी लौट कर नहीं आउंगी। हो सकता है दुनिया में कोई और कोना हो जंहा हमें भोजन और आवास मिल जाये। पर मेरा नन्हे तो अब कभी लौट नहीं आएगा। हाय रे इंसान और तुम्हारी फ़ितरत !
-चंचल 'साक्षी'
10/11/2019
Comments
बहुत अच्छा लिखी हैं चंचल जी।