मन : श्वेता सिन्हा


हल्की,गहरी,
संकरी,चौड़ी
खुरदरी,नुकीली,
कंटीली
अनगिनत 
आकार-प्रकार की
वर्जनाओं के नाम पर
खींची सीमा रेखाओं के
इस पार से लोलुप दृष्टि से
छुप-छुप कर ताकता 
उसपार
मर्यादा के भारी परदों को 
बार-बार सरकाता,लगाता,
अपने तन की वर्जनाओं के
छिछले बाड़ में क़ैद
छटपटाता 
लाँघकर देहरी
सर्वस्व पा लेने के 
आभास में ख़ुश होता
उन्मुक्त मन
वर्जित प्रदेश के
विस्तृत आकाश में
उड़ता रहता है स्वच्छंद।

श्वेता सिन्हा
(जमशेदपुर)

Comments

Sweta sinha said…
जी.चंचल जी नमस्ते, कृपया मुझसे ई-मेल पर संपर्क करें।
Swetajsr2014@gmail.com

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