एक ख्याब कुछ ऐसे - Poetry
भोर की किरण हो जैसे 
चाँद छूने की आस नहीं 
असमान में उड़ने की प्यास नहीं 
ख्याब तो है धरती पर-
जीवन संवारू 
दुख-दर्द मिटाऊ 
मानवता को सार्थक कर 
खुशिया फैलाऊ
निरासाओ को आस 
अँधेरे में प्रकाश हो जैसे  
एक ख्याब कुछ ऐसे 
पूर्णिमा की चाँद हो जैसे 
खुशियों के लिए इन्सां- 
पैसो पर न हो निर्भर 
चंद कागज के टुकड़े-
बाटें न जीवन 
जीव को जीव से ही प्यार हो 
धन-दौलत का- 
केवल न सत्कार हो
हर रंग मिलकर 
इन्द्रधनुष बनाये जैसे 
एक ख्याब कुछ ऐसे
दीपक की जगमगाहट हो जैसे 
मर कर भी मै मर न पाऊ 
ऐसा कुछ मै कर जाऊ 
इस धरा पैर सदा-सर्वदा
मानवता के लिए जानी जाऊ
आस भी यही और
प्यास भी यही
जीवन का एहसास भी यही 
ऐसा क्या मै कर पाऊँगी ?
कर जाऊ भी तो कैसे ?   
-चंचल साक्षी 
24th Dec,12



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