हाँ, फ़र्क परता है - Poetry






 

 

 

 

 

 

 

क्या फ़र्क परता है 
सामने मंदिर या मस्ज़िद 
चर्च या गुरुद्वारा है 
प्रार्थना को बस हाथ उठना चाहिए 
अपने 'ईश' के ईबादत में 
सर झुकना चाहिए 
इंसान का इंसान से प्रेम होना चाहिए 
क्या लिवाश क्या रंग 
भेद मिटना चाहिए
 

हाँ, फ़र्क परता है!
जब मन में मैल हो 
छोटी छोटी बातो पर 
करना जब बैर हो 
दया की जगह जब 
क्रूरता आ जाए 
इंसान को देखकर हैवानियत भी शर्माय!!
-चंचल साक्षी 
२९-१२-२०१५ 

Comments