'समानता सच्चाई या धोखाधड़ी?

बेटा बेटी में कोई फ़र्क नही होता, वाकई? हमारा समाज किस तरह अपने सपूतो(पुरुषों) के साथ भेदभाव कर रहा है देखिये👇

(1) 'मर्द को दर्द नही होता यह एक साजिश है ताकी मर्द कोल्हू के बैल की तरह पिसता रहे और उफ़ न करे,

(2) 'मर्द कभी रोता नही' क्यों वो पेड़ से टपक कर आया है इंसान है दर्द भी होगा और आँशु भी आएंगे। और आने भी चाहिये रोने से मन हल्का हो जाता है।

(3) बेटी पति की गुलामी करें तो वो प्यार है, मेरी लाडली संसार बसा रही है। बेटा अपनी पत्नी को प्यार करे- नालायक जोडू का गुलाम है,

(4)घर मे फूटी कौड़ी हो या न हो बेटे की किडनी गिरवी रखनी पड़े रखेंगे पर बेटी को दहेज़ में कोई कमी न हो,

(5) बेटा को विरासत में कुछ मिले न मिले बेटी को आशीर्वाद और दहेज़ फिर तोहफा फिर ये उत्सव ये पर्व में बायना में कमी नही होनी चाहिए,

(6) सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात लड़कियां अपने साथ दहेज में कभी कभी उनके हिस्से में मिलनेवाली जायदाद से ज्यादा बड़ा हिस्सा ले लेकर व्याही जाती है। पर फिर भी वो विक्टिम कार्ड प्ले करती है,

(7) माँ-बाप के जीवन की जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ बेटे के ऊपर और सारा माल पानी और प्यार आशिर्बाद बेटी को,

(8)बेटियां शादी के बाद भी अपने मायके में एक बेटे के बराबर हक़ चाहती है कौन सा काम कैसे होगा सब उससे पूछा जाए और उनके मनमुताबिक होना भी चाहिए बस जिम्मेदारी निभाने के वक़्त वो मेहमान और पराया धन हो जाती है,

(9) लड़कियों को ये समझना होगा कि वो पुराने जमाने का कांसेप्ट बेटी पराया धन को मान रही है अगर तो मायके में हस्तछेप न करें लेकिन अगर समानता के कॉन्सेट 'बेटा बेटी बराबर' को मानती है तो बेटे की तरह जिम्मेदारी निभाये। माँ बाप का खयाल अपने शक्ति अनुसार रखें भी और उसका अहसान न जताएं। भाई के कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग करे। बराबरी कोई ख़ैरात में मिलने वाला उपाधि नही है और होना भी नही चाहिए,

(10) एक पुरुष जो दिन रात रुपये कमा रहा है जो कहीं बहनो की खुशी के लिए अपनी चैन सुकून गवां रहा है, तो कहीं अपने बच्चे की भविष्य की न सोचकर अपने माँ बाप का भविष्य सुरक्षित कर रहा है। उसे प्राथमिकता तो मिलनी चाहिए। पर हो उल्टा रहा है। लोग कहते है अरे वो कौन सा नया काम कर रहा है ये तो उसका फ़र्ज़ है। ठीक है फ़िर बेटी का क्या फ़र्ज़ है?

(11)कहीं कहीं बेटी काम करती है तो उसके आमद को उसका समझा जाता है पर बहु काम करें उनके आमद का एक एक रुपया सिर्फ उनका है। बहु अपने पति को सहयोग करे वो काफ़ी नही उन्हें डायरेक्ट बेनिफिट्स चाहिए।

(👆ऊपर लिखी सभी बातें सभी पे लागू नही होती) 
अगर ये बातें बृहद रूप से समझा और माना नही जाएगा तबतक "समानता(equality)" बेईमानी है। बराबरी का कांसेप्ट माँ बाप को लाना पड़ेगा बेटीयों को पढ़ाओ, जीवन जीने के काबिल बनाओ और उससे भी कमाई का वही आशा रखो जो अपने बेटे से चाहते है। बेटियों को जिम्मेदार बनाएं बोझ नही। और लड़कियों/स्त्रियों निर्णय करो समानता चाहिए या बेटी पराया धन वाली उपाधि?
#जयहिंद #चंचलसाक्षी

Comments

समानता का नियम घर से ही शुरू हो तो अच्छा है ... सहमत आपकी बात से ...

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