काम की तलाश में - कविता
काम की तलाश में
जो निकली महिलाएं
घर-बार छोड़
दूर शहर की ओर
सोचो क्यो नही भाया
उसे छत की साया
क्यो बन बैठी मर्दानी
वो घरेलू माया
बात बहुत सीधी है
समझ सको तो समझो
एक शेफ जो चार मददगारों से घिरा है
एक एडमिन जो ऑफिस मैनेज करता है
एक ड्राइक्लीनर जो कपड़े धोता है
एक डिज़ाइनर जो घर बनाता है
एक नर्स जो पेसेंट देखती है
इन सबो का काम वो अकेले करती है
बदले में ताना सुनती है
पूरे दिन तुमने किया क्या है?
समाज ने उसे पिछलग्गू की उपाधि दी
उस कर्मठ को नही स्वीकार
छाया बन के रह जाना
इसलिए वो पगली
निकली है घर से बाहर
काम की तलाश में।
-चंचल सिंह साक्षी
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