कविता: "माँ होना क्या होता हैं"

माँ होना क्या होता हैं,
ये कैसे तुम्हें बयान करू?
जिस पल ये जाना,
नन्ही जान के पलने का,
उसी पल जन्म
हुआ एक माँ का।
स्वं माँ हूँ, माँ का कैसे न गुणगान करू!
माँ होना क्या होता हैं,
ये कैसे तुम्हें बयान करू?

सोते जागते, उठते बैठते,
नन्ही जान को वो सहेजती,
क्या खाना हैं क्या तजना ,
हर बात का ध्यान वो रखती।
मैं भी माँ हूँ क्यो न स्वं पर अभिमान करू!
माँ होना क्या होता हैं,
ये कैसे तुम्हें बयान करू?

सहकर अथाह दर्द,
एक बच्चे को जनती हैं,
यूँ ही नही माँ का
उपाधि उसे मिलती हैं।
जो दर्द माँ सहे उसका क्यों न बखान करू!
माँ होना क्या होता हैं,
ये कैसे तुम्हें बयान करू?

पगली सी माँ पीछे भागे,
बच्चे के पीछे खाना ले
उसे चैन कहाँ मिले
जबतक बच्चा खा न ले,
खिला पिला कर बच्चों को ही,
वह अपना जलपान करे।
अपनी लाडली का पेट भर संतुष्टि का भान करू!
माँ होना क्या होता हैं,
ये कैसे तुम्हें बयान करू?

यूँ तो गाथाएं लिखी जा सकती हैं,
माँ की किये उपकारों पे,
पर माँ अपने बच्चे से,
करती अथाह प्यार उपकार नही करती।
अपनी लाडली के लिए मैं भी अनेकों नमन करू!
माँ होना क्या होता हैं,
ये कैसे तुम्हें बयान करू?

हर माँ को बच्चा मिले 
और हर बच्चे की माँ रहे यही प्रार्थना।

#मातृ_दिवस_की_बधाई 🌹🙏🏻

©चंचल सिंह 'साक्षी'
   सीतामढ़ी, बिहार 


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