कविता : चिंगारी




















चिंगारी अभी अंकुरित हुई हैं
इसे और भड़काना हैं
मंजिल भले दूर सही
पैदल चले जाना हैं।

धरती पे पैर टिका रहे
 पांव छिले तो छिले
उठाके सर अपना
आसमान को झुकना है।

आये तूफ़ान तो क्या
सुख जाए खून भले
बहाके आंसू फ़िर से
ख़ुद को जिलाना हैं।

वो कौन हैं जो रोक सके
ठाण लिया तुमने जिसे
चीर कर फ़ौलाद का दिल
मंजिल को पाना हैं।

जो अड़चन हैं तुममें ही हैं
झांक कर देखो भले
मसल दो उस हलचल को
तुम्हे आगे बढ़ जाना हैं।

साधनों की कमी क्यों न हो
व्याधियों की जमीं क्यो न हो
मंजिल भले दूर सही
पैदल चले जाना हैं।

-चंचल सिंह 'साक्षी'

Comments

Unknown said…
विपरीत से विपरीत परिस्थिति में भी लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग अडिग रहने और कभी हार न मानते हुए निरंतर आगे बढ़ते रहने को प्रेरित करती बेहद खूबसूरत रचना की प्रस्तुति...

Popular Posts